कवितायेंहिंदी साहित्य

बस नहीं अपना

इक खुशनुमा लम्हा आकर गुजर गया

क्या हुआ कुछ दूर साथ चले ,

क्या हुआ चलकर विछड़ गए

सोचो एक खूबसूरत मोड़ दे सके

वरना याद आते उम्र भर

पर अभी क्या

याद तो आते अभी भी

आंखों को नम कर जाते अभी भी

सोचता हू , इतनी पुरानी बात

कैसे याद आती है

क्यूँ याद आती है

पर यादों पर तो बस नहीं अपना .

सोचता हू सपनों में भी जाते हो

कैसे आते हो

क्यूँ आते हो

पर सपनो पर तो बस नही अपना

बरसों से नहीं देखा आपको

पर लगता है हर पल देखा है तुमको

पर क्या करूं

यादों पर तो बस नहीं अपना

बात करता हूँ तो जुबान पे नाम आपका

क्यूँ आता है

कैसे आता है

पर क्या करूं

बातों पर अब बस नहीं अपना

जब जब भुलाया आपको , आप ही आप नजर आए

क्या करूं अब

कैसे करूं अब

अब तो अपने आप पर भी बस नहीं अपना

–  सुरेन्द्र मोहन सिंह

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